Subject - Political Science
Chapter 1 - राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां
पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिया गया भाषण
* कुछ महत्वपूर्ण बिंदु :
1) 14 से 15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को भारत आजाद हुआ और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान सभा के विशेष सत्र को संबोधित करते हुए भाषण दिया गया जिसे टि्स्ट विद डेस्टिनी या भाग्य वधू से चिर प्रतिक्षित भेंट के नाम से जाना जाता है
2) आजादी के बाद ऐसी दो बातें थी जिन पर सभी लोगों की सहमति थी वह दो बातें निम्नलिखित थी
1: पहला कि देश का शासन लोकतांत्रिक सरकार के जरिए चलाया जाएगा ।
2: दूसरा सरकार सभी नागरिकों के भले के लिए काम करेगी ।
3) 1947 का वर्ष अभूतपूर्व हिंसा विस्थापन और त्रासदी से भरा था।
4) 1947 में भारत को आजादी तो मिली साथ ही ब्रिटिश भारत को विस्थापन का सामना भी करना पड़ा ब्रिटिश भारत दो हिस्सों भारत और पाकिस्तान में टूट गया।
5) स्वतंत्रता के पश्चात स्वतंत्र भारत के सामने तीन प्रमुख चुनौतियां थी जो निम्नलिखित है 1: प्रथम चुनौती भारत को एकता के सूत्र में बांधने की थी ।
2: दूसरी चुनौती भारत में लोकतंत्र स्थापित करने की थी।
3: तीसरी चुनौती देश का संपूर्ण विकास करने की थी ।
1947 में शरणार्थियों से भारी रेलगाड़ी
* विभाजन तथा विभाजन की प्रक्रिया
1) 14 से 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश भारत दो राष्ट्र भारत और पाकिस्तान में विभाजित हो गया।
2) मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने द्विराष्ट्र सिद्धांत की मांग की इस सिद्धांत में कहा गया की भारत किसी एक कौमो का देश नहीं बल्कि हिंदू और मुसलमान दो कौमो का देश है इसलिए हिंदू और मुस्लिम दो धर्म इस देश में निवास करते हैं और इसीलिए अगर विभाजन होता है तो मुसलमानों के लिए एक नया देश अर्थात पाकिस्तान बना दिया जाए ।
3) द्विराष्ट्र सिद्धांत का विरोध कांग्रेस ने किया ।
4) विभाजन का आधार धार्मिक बहुसंख्यक को बनाया गया इसका अर्थ है जिन क्षेत्रों में मुसलमान बहुसंख्यक थे उन क्षेत्रों को पाकिस्तान का भूभग बना दिया जाएगा और शेष बचा हिस्सा भारत कहलाएगा ।
5) विभाजन के समय बहुत सारी कठिनाइयां आई जैसे ब्रिटिश भारत का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं था जहां मुसलमान बहुसंख्यक हो ऐसे केवल दो क्षेत्र थे एक पूरब में था तो एक पश्चिम में इसीलिए तय किया गया कि पाकिस्तान दो बनेंगे एक पूर्वी पाकिस्तान होगा तो दूसरा पश्चिमी पाकिस्तान होगा।
6) पश्चिम में पंजाब राज्य के कई सारे जिलो में मुसलमान बहुसंख्यक थे इसीलिए इस इलाके को पश्चिमी पाकिस्तान बनाया गया। पूरब में पश्चिम बंगाल के कई सारे जगहों पर मुसलमान बहुसंख्यक ते इसीलिए इसका हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान बनाया गया ।
7) मुस्लिम बहुसंख्यक का प्रत्येक इलाका पाकिस्तान में जाने को राजी नहीं था पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत के निर्विवाद नेता खान अब्दुल गफ्फार खान जिन्हें समांत गांधी के नाम से भी जाना जाता है इन्होंने द्विराष्ट्र सिद्धांत का विरोध किया इसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
8) मुस्लिम बहुसंख्यक प्रांत पंजाब और पश्चिम बंगाल के कई हिस्सों में बहुसंख्यक गैर मुस्लिम आबादी वाले लोग थे ऐसे क्षेत्रों में बटवारा धार्मिक बहुसंख्यक के आधार पर जिले या उससे निचले स्तर पर हुआ।
9) बंटवारे के बाद कई लोगों को तो यह तक नहीं पता था कि वह भारत में है या पाकिस्तान में।
10) विभाजन में सबसे बड़ी समस्या अल्पसंख्यकों की थी सीमा के दोनों तरफ अल्पसंख्यक मौजूद थे जो क्षेत्र पाकिस्तान में थे वहां लाखों की संख्या में हिंदू और सिख आबादी थी ठीक इसी प्रकार पंजाब और बंगाल के भारतीय भूभाग में भी लाखों की संख्या में मुसलमान मौजूद थे दोनों तरफ अल्पसंख्यकों पर हमने शुरू होने लगे विकराल समस्या आ गई अल्पसंख्यकों को हिंसा का सामना करना पड़ा।
* विभाजन के परिणाम
1 आबादी का स्थानांतरण आकस्मिक अनियोजित एवं त्रासदी से भरा था। तथा यह आबादी का सबसे बड़ा स्थानतरण था
2 सीमा के आरपार दोनों तरफ से अल्पसंख्यकों को मारा गया ।
3 लाहौर, अमृतसर और कोलकाता जैसे शहर में संप्रदायिक दंगे हुए ।
4 लोगों का अपना घर छोड़ना पड़ा तथा उन्हें सीमा के आर पार जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
5 अल्पसंख्यकों को शरणार्थी शिविर में अस्थाई रूप से रहना पड़ा।
6 पुलिस तथा प्रशासन के साथ बुरा व्यवहार किया गया।
7 औरतों का अपहरण किया गया जबरन शादी की गई और अपरहण करने वाले का धर्म अपनाना पड़ा।
8 परिवार के लोगों ने अपने कुल की इज्जत को बचाने के लिए घर की औरतों को मार दिया
9 बटवारा केवल दो देश का नहीं था बल्कि इसमें वित्तीय संपदा टेबल ,कुर्सी ,पुलिस प्रशासन, सरकारी और रेलवे कर्मचारी का भी विभाजन हुआ।
10) 80 लाख लोग शरणार्थी बन गए और बंटवारे में लगभग 5 से 10 लाख लोग मारा गया
* राजवाड़े
ब्रिटिश भारत दो भागों में बटा हुआ था एक भाग में ब्रिटिश प्रभुत्व वाले प्रांत थे तो दूसरे भाग में देशी रियासतें थी जिन्हें रजवाड़ा कहा गया।
ब्रिटिश प्रभुत्व वाले प्रांत पर अंग्रेजी सरकार का सीधा नियंत्रण था परंतु देसी रियासतों पर उनका सीधा नियंत्रण नहीं था ।
छोटे बड़े आकार के कुछ राज्य जिन पर राजाओं का शासन था उन्हें रजवाड़े कहा गया
भारतीय संघ में कुल 565 रियासतें थी जिन पर राजाओं का शासन था
* रजवाड़ों के विलय की समस्या
1 आजादी के बाद ब्रिटिश सरकार ने रजवाड़ों के सामने तीन विकल्प दिए।
2 रजवाड़े या तो स्वतंत्र हो जाए या भारतीय संघ में शामिल हो जाए या तो पाकिस्तान में जा सकते हैं ।
3 इस कारण भारत संघ की एकता और अखंडता पर खतरा मंडराने लगा
4 सबसे पहले त्रावणकोर के राजा ने अपने राज्य को स्वतंत्र रखने की घोषणा की।
5 फिर हैदराबाद के निजाम ने भी स्वतंत्र रहने की घोषणा कर दी।
6 इससे यह पता लगने लगा की भारतीय संघ कई छोटे-छोटे देशों में विभाजित हो जाएगा
7 रजवाड़ों को भारतीय संघ में शामिल कराने की जिम्मेदारी भारत के प्रथम गृह मंत्री या उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को दे दी गई।
8 सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बड़ी सूझबूझ से 565 की 565 रियासत को भारतीय संघ में शामिल करा लिया।
9 सरदार वल्लभभाई पटेल की रजवाड़ों को भारतीय संघ में शामिल कराने में एक ऐतिहासिक भूमिका रही।
10 पटेल जी को केवल 4 रियासतों को भारतीय संघ में शामिल कराने में कठिनाई आई
भारतीय संघ में कठिनाई से शामिल होने वाली रियासतें
1 जूनागढ़ 2 हैदराबाद
3 मणिपुर 4 जम्मू और कश्मीर
कठिनाई से शामिल होने वाली रियासतों के राजा या शासक का नाम
1 जम्मू कश्मीर के राजा - राजा हरि सिंह
2 हैदराबाद के शासक को निजाम कहा जाता था निजाम का नाम उस्मान अली खान। यह भारत के सबसे अमीर शासक थे।
3 जूनागढ़ के शासक मोहम्मद महाबत खान थे।
4 मणिपुर के महाराजा बोधचंद्र जी थे।
रजाकार
रजाकार हैदराबाद के शासक निजाम मीर उस्मान अली खान ने अपने राज्य को स्वतंत्र व अपने शासन को बनाए रखने के लिए बनाया था रजाकार एक प्रकार की सेना थी जिसमें सैनिक तथा अर्धसैनिक बल कार्यरत थे रजाकारों ने महिलाओं और हैदराबाद की गैर मुस्लिम आबादी पर बहुत अत्याचार किया था हैदराबाद की सैनिक और अर्धसैनिक बलों को ही रजाकार का नाम दिया गया।
* इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन ( विलय का सहमति पत्र )
विलय का सहमति पत्र एक कानूनी दस्तावेज है जिसमें रजवाड़ों के शासकों ने अपने राज्य को भारतीय संघ में शामिल करने के लिए मंजूरी दे दी थी सभी रजवाड़ों के शासकों को इस सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य था विलय का सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने से रजवाड़े पूरी तरह से भारतीय संघ में शामिल हो चुके थे इसे ही इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन या विलय का सहमति पत्र कहां गया ।जूनागढ़, हैदराबाद ,कश्मीर और मणिपुर के रियासतों को भारतीय संघ में शामिल कराने में बहुत कठिनाई परंतु सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपनी सूझबूझ से इन चारों रियासतों को भी भारतीय संघ में शामिल करा लिया और इन रियासतों ने भी इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर कर दिए।
राज्यों का पुनर्गठन
1 औपनिवेशिक शासन के समय प्रांतों का गठन प्रशासनिक सुविधा के अनुसार किया गया था लेकिन अब स्वतंत्र भारत में राज्यों के गठन की मांग भाषा और सांस्कृतिक आधार पर की गई। इसीलिए राज्यों का गठन भाषाई और सांस्कृतिक बहुलता के आधार पर किया गया
2 भाषा के आधार पर प्रांतों का गठन का मुद्दा कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन 1920 में पहली बार दिखा।
3 मद्रास प्रांत के तेलुगु भाषी लोगो ने उनके लिए एक अलग नया राज्य आंध्रप्रदेश की मांग की
4 तेलुगु भाषी लोगों ने भाषाई आधार राज्यों के पुनर्गठन की मांग की।
5 आंध्र प्रदेश आंदोलन चलाया गया जिसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पोट्टी श्रीरामुलू अनिश्चित काल के लिए भूख हड़ताल पर बैठ गए और 56 दिनों के बाद उनकी मृत्यु हो गई
6 उनकी मृत्यु से बड़ी अव्यवस्था फैली और आंध्र प्रदेश के कई जगहों पर हिंसक घटनाएं होने लगी लोग बड़ी तादाद में सड़कों पर विरोध करने लग गए पुलिस फायरिंग हुई कई लोग घायल हुए और कई मारे गए।
7 दिसंबर 1952 में प्रधानमंत्री द्वारा सर्वप्रथम एक नया भाषा के आधार पर आंध्र प्रदेश राज्य बनाया गया।
8 आंध्र प्रदेश के गठन के बाद देश के दूसरे हिस्सों में भी भाषा के आधार पर राज्यों को गठित करने की मांग होने लगी।
9 केंद्र सरकार द्वारा दिसंबर 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया।
10 इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में राज्यों की सीमाओं का निर्धारण बोली जाने वाली भाषा के आधार पर किया।
11 इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सन 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम बना।
12 इस अधिनियम में 14 नए राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बनाएं ।
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