Political Science Class 12 Chapter 1 Notes in hindi (New syllabus 2020-21) |शीत युद्ध का दौर और गुटनिरपेक्ष आंदोलन

पहली दुनिया, दूसरी दुनिया ,तीसरी दुनिया के देश 

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Nato, varsha and NAM country


Class - 12

Subject - political science

CHAPTER -1 शीतयुद्ध का दौर और गुटनिरपेक्ष आंदोलन 

 * शीत युद्ध 

 शीत युद्ध उस युद्ध को कहते हैं जिनमें केवल युद्ध की संभावनाएं बनी रहती हैं और इसमें संघर्ष ,तनाव और प्रतिद्वंदिता की  स्थिति बनी रहती है और युद्ध का भय रहता है साथ ही ऐसा लगता है कि युद्ध होकर रहेगा परंतु वास्तव में कोई युद्ध नहीं होता और इसमें कोई भी रक्तरंजित युद्ध नहीं होता है ऐसा द्वितीय विश्व युद्ध समाप्ति के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तब तक हुआ जब तक सोवियत संघ का विघटन ना हो गया हो। सोवियत संघ के  विघटन तक अमेरिका तथा सोवियत संघ के बीच तनावपूर्ण स्थिति को शीत युद्ध कहा गया ।

शीत युद्ध का दौर - 1945 से 1991 तक माना जाता है


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* अमेरिका द्वारा जापान के 2 शहरों पर परमाणु बमों से हमला (हिरोशिमा और नागासाकी) पर

अमरीका ने जापान के दो शहरों पर परमाणु बम से हमला किया 

1) 6 अगस्त 1945 = हिरोशिमा

2) 9 अगस्त 1945 = नागासाकी 

3) इन बमों के नाम लिटिया बॉय और फैटमैन 

4) इन बमों की क्षमता 15 से 21 किलोटन है


इस घटना के बाद अमरीका की बहुत सारी आलोचना हुई थी

आलोचकों का कहना था कि जब जापान आत्म समर्पण करने वाला था तो ऐसे समय में परमाणु हमला उचित नहीं था ऐसे में परमाणु हमले की कोई जरूरत नहीं थी ।

आलोचकों का मानना था कि अमेरिका का इस हमले के पीछे उद्देश्य था कि सोवियत संघ को  एशिया तथा अन्य जगहों पर राजनीतिक और सैन्य लाभ उठाने से रोका जाए और सोवियत संघ के समक्ष यह दिखाना चाहता था कि अमेरिका ही सबसे बड़ी ताकत है विश्व में एक ही महाशक्ति है वह है अमेरिका ।

अमरीका के समर्थकों ने हमले के पक्ष में तर्क दिया कि अमरीका चाहता था कि दूसरा विश्वयुद्ध जल्दी से जल्दी समाप्त हो जाए और अमेरिका और मित्र राष्ट्र की आगे की जनहानि को रोकने के लिए अमरीका ने जापान पर हमला किया और उसी के पश्चात द्वितीय विश्व युद्ध का अंत हुआ


* दोनों महा शक्तियों की विचारधाराएं 

1 सोवियत संघ की विचारधारा - साम्यवाद

2 अमेरिका की विचारधारा - पूंजीवाद 


* पहला विश्वयुद्ध -1914 - 1918

 * दूसरा विश्वयुद्ध-1939 - 1945


द्वितीय विश्व युद्ध  किन दो राष्ट्रों के बीच  हुआ ? 

मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र के बीच द्वितीय विश्व युद्ध हुआ ।

मित्र राष्ट्र में शामिल देश -अमेरिका, फ़्रांस, ब्रिटेन, सोवियत संघ

धुरी राष्ट्र में शामिल देश -जर्मनी, जापान, इटली


 * शीत युद्ध के कारण 

1: महाशक्ति बनने की होड़ (सोवियत संघ और अमेरिका के बीच )

2: महाशक्तियों के बीच हथियारों की होड़ 

3: दोनों महाशक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा

4: दोनों महाशक्तियों के बीच विचारधाराओं को लेकर लड़ाई 

5: दोनों महाशक्तियां वर्चस्व स्थापित करना चाहते थे 


* क्यूबा मिसाईल संकट

1) क्यूबा अमरीका के तट से सटा एक छोटा सा द्वीपीय देश है लेकिन क्यूबा की दोस्ती सोवियत संघ से थी ।

2) क्यूबा को सोवियत संघ से कूटनीतिक तथा वित्तीय सहायता मिलती थी  

3) सोवियत संघ के नेता निकिता खुस्च्रेव ने क्यूबा को रुस के सैनिक अड्डे के रूप में इस्तेमाल करने का फैसला किया 

4) सन 1962 में सोवियत संघ ने क्यूबा में अपनी परमाणु मिसाईल तैनात कर दी

5) इस तैनाती के कारण अमेरिका सोवियत संघ के निकटतम निशाने पर आ गया और सोवियत संघ इस बार अमेरिका के दुगने ठिकानों पर हमला कर सकता था 

6) इस बात की खबर अमरीका को तीन हफ्ते के बाद पता चली अमरीकी राष्ट्रपति जॉन ऍफ़ केनेडी ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहते थे जिससे दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ जाये

7) क्योकि अगर युद्ध होता तो ज्यादा हानि अमरीका को उठानी पड़ती

8) अमरीकी राष्ट्रपति को इस बात को लेकर भी अडिग थे कि निकिता खुस्च्रेव वंहा से अपनी मिसाईल हटा लें

9) जॉन एफ कैनेडी ने आदेश देकर अपने अमरीकी जंगी बेडो को आगे कर क्यूबा की तरफ आने वाले सोवियत संघ के जहाजो को रोकवा दिया

10) ऐसे समय में यह लगने लगा कि युद्ध होकर रहेगा परंतु कोई युद्ध नहीं हुआ दोनों ने युद्ध टालने का फैसला लिया और दुनिया तीसरे विश्व युद्ध से बच गई 

11) इस स्थिति को ही क्यूबा मिसाइल संकट का नाम दिया गया 

12) क्यूबा मिसाइल संकट को शीत युद्ध का चरम बिंदु भी कहते हैं 


* क्यूबा मिसाईल संकट के समय क्यूबा के नेता कौन थे । 

   Ans  क्यूबा के नेता - फिदेल कास्त्रो


* दो ध्रुवीय विश्व का आरंभ

दो ध्रुवीय विश्व का अर्थ है विश्व का दो ध्रुवों  अर्थात दो गुटों में बंट जाना| दोनों महाशक्तियों ने विश्व के अलग-अलग हिस्सों पर अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया । यहीं से दो ध्रुवीयता की शुरुआत हो चुकी थी दुनिया दो गुटों में बांटी जा रही थी बंटवारा यूरोप महाद्वीप के बर्लिन से शुरू हुआ (बर्लिन की दीवार‌‌) बनाई गई 

दो खेमे बन गए- पूर्वी खेमा और पश्चिमी खेमा 

पूर्वी खेमा ( पूर्वी गठबंधन ) - सोवियत संघ (USSR )

पश्चिमी खेमा ( पश्चिमी गठबंधन ) - अमेरिका ( USA )


* छोटे देशो को महाशक्तियो में शामिल होने से क्या लाभ थे

1) सुरक्षा का वायदा मिल जाता था

2) आर्थिक मदद मिल जाती थी 

3) सैन्य सहायता मिल जाती थी 

4) हथियार मिल जाते थे 


* महाशक्तियाँ छोटे देशो के साथ गठबंधन क्यों बनाती थी

1) महत्वपूर्ण संसाधन प्राप्त करने के लिए ( जैसे तेल तथा खनिज )

2) भू - क्षेत्र मिल जाता था जिससे महाशक्तियां हथियार व सेना का संचालन कर सकती थी 

3) सैनिक ठिकाने  जिससे महाशक्तियां  एक दूसरे की जासूसी कर सकती थी 

4) महा शक्तियों को छोटे देशों से आर्थिक मदद मिल जाती थी 


* अपरोध से आप क्या समझते हैं 

जब दोनों पक्ष बहुत ताकतवर हो और एक दूसरे को बहुत नुकसान पहुंचा सकते हो ऐसे में कोई भी पक्ष युद्ध का खतरा मोल लेना नहीं चाहता ऐसी स्थिति में दोनों के बीच रक्त रंजीत युद्ध की होने की संभावना कम रह जाती है ऐसा ही अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हुआ ।

अमेरिका और सो.संघ दोनों ही ताकतवर थे

इसी के कारण दोनों के बीच युद्ध नहीं हुआ कोई भी पक्ष युद्ध का खतरा नहीं उठाना चाहता था इसी कारण दुनिया तीसरे विश्व युद्ध से बच गई 


* नाटो का पूरा नाम क्या है तथा इसका गठन कब हुआ ।

 नाटो का पूरा नाम -North Atlantic Treaty Organisation

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन 

इसकी स्थापना 4 अप्रैल 1949 को हुई और इसकी स्थापना के समय इसमें 12 सदस्य देश थे ।

उद्देश्य- सभी सदस्य मिल-जुलकर रहेंगे तथा एक दुसरे की मदद करेंगे

अगर एक पर भी हमला होगा तो उसे अपने ऊपर हमला मानकर और मिलकर मुकाबला करेंगे

अमेरिका द्वारा बनाया गया गठबंधन है 

* सीटो (SEATO) के बारे में बताइए ।

सीटो का पूरा नाम - South East Asia Treaty Organisation

दक्षिण-पूर्व एशियाई संधि-संगठन

इसकी स्थापना-1954 में

अमेरिका द्वारा बनाया गया गठबंधन है 


* सेंटो (CENTO) के बारे में बताइए।

सेंटो का पूरा नाम - Central Treaty Organisation

केंद्रीय संधि-संगठन

इसकी स्थापना-1955 में

अमेरिका द्वारा बनाया गया गठबंधन है।


* सोवियत संघ ने 1955 में कौन-सी संधि की थी।

1) वारसा संधि तथा इसकी स्थापना 1955 में हुई थी

2) इसका उद्देश्य नाटो में शामिल देशो का पूर्वी यूरोप में मुकाबला करना था


* 1960 के दशक में दोनों महाशक्तियो ने किन 3 संधियों पर हस्ताक्षर किए

1) परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (L.T.B.T)

2) परमाणु अप्रसार संधि (N.P.T)

3) परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन संधि


* शीतयुद्ध के दायरे

जब हम शीतयुद्ध के दायरों की बात कर रहे होते हैं तो हमारा तात्पर्य ऐसे क्षेत्रों से होता है जहां विरोधी खेमों के बीच संकट के अवसर आए युद्ध हुए कई जगह युद्ध की संभावना बनी लेकिन ये एक हद से ज्यादा नहीं बढ़ पाई  तथा तीसरे विश्व युद्ध का रूप नहीं ले पाई हां हालांकि कुछ छोटे देशों के मध्य रक्त रंजित युद्ध हुए लेकिन एक सीमा तक । जिसने तीसरे विश्वयुद्ध का रूप नहीं लिया  कोरिया, वियतनाम और अफगानिस्तान जैसे कुछ क्षेत्रों को युद्ध का सामना करना पड़ा।

दोनों महाशक्तियों के बीच संकट के समय 

1) कोरिया संकट (1950-53)

2) बर्लिन की दीवार (1958-62)

3) कांगो संकट  (1960 में )

4) अमेरिका का वियतनाम में हस्तक्षेप (1954-75)

5) सोवियत संघ का हंगरी में हस्तक्षेप (1956)

6) क्यूबा का मिसाइल संकट (1962)


* भारत के जवाहरलाल नेहरु ने उत्तरी और दक्षिणी कोरिया के बीच मध्यस्थता कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

* कांगो संकट के समय में संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने मध्यस्थता में भूमिका निभाई


दो ध्रुवीयता को चुनौती – गुट-निरपेक्ष आंदोलन

गुटनिरपेक्षता का अर्थ है गुटों से अलग रहना। जिसे नव स्वतंत्र तंत्र देश ने के गुटों से अलग रहने का फैसला किया 

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात दोनों महा शक्तियों ने विश्व को दो गुटों में बांट दिया था अब अगर कोई भी नया देश बनता तो उसके पास दो रास्ते थे या तो वह अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका के गुट में शामिल हो जाए या तो सोवियत संघ के गुट में। 

ऐसे में नवस्वतंत्र देशों के सामने फिर से गुलाम हो जाने का खतरा पैदा हो गया

इसी समय गुटनिरपेक्ष आंदोलन का उदय हुआ जिसने एशिया और अफ्रीका के नव स्वतंत्र देशों को एक तीसरा विकल्प प्रदान किया यह विकल्प दोनों महा शक्तियों के गुटों से अलग रहने का था अर्थात अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखने का था। इस परिस्थिती में कुछ देशों ने दोनों गुटों से अलग रहने का फैसला किया 

इसे ही गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के नाम से जाना जाता है

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की नीव 1955 में बांडुंग सम्मलेन में पड़ीं


गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक देश व उनके नेता 

1) युगोस्लाविया- जोसेफ ब्राज़ टीटो

2) भारत- पंडित जवाहरलाल नेहरु

3) मिस्र- गमाल अब्दुल नासिर

4) इंडोनेशिया-  डॉ सुकर्णो

5) घाना- वामे एनेक्रुमा


* गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का पहला सम्मेलन

i) 1961 में बेलग्रेड में 

ii) 25 सदस्य देश


* गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का 14वां सम्मेलन

1) 2006 में हवाना (क्यूबा) में

2) 116 सदस्य देश

3) 15 पर्यवेक्षक देश


* वर्तमान में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्यों की संख्या 

वर्तमान में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्यों की संख्या 120 है तथा वर्तमान में इसके 17 सदस्य देश तथा 10 अंतरराष्ट्रीय संगठन पर्यवेक्षक हैं

* गुटनिरपेक्ष आंदोलन का 18 वां सम्मेलन 

गुटनिरपेक्ष आंदोलन का आठवां सम्मेलन का आयोजन अज़रबेजान में 2019 में होना तय हुआ।


# गुटनिरपेक्ष आंदोलन से भारत को क्या लाभ हुए

भारत अन्तराष्ट्रीय फैसले स्वतंत्र होकर अपने हित में ले पाया तथा भारत दुबारा से गुलाम होने से बच पाया और भारत हमेशा ऐसी स्थिति में बना रहा की अगर कोई एक महाशक्ति उसके खिलाफ हो जाये तो वह दूसरी महाशक्ति के करीब जा सकता था और इसी प्रकार अगर दूसरी महाशक्ति उस पर दबाव बनाए तो वह अपना खिसकाव पहली महांशक्ति की और कर सकता था तथा गुटनिरपेक्ष आंदोलन की वजह से वह अपनी संप्रभुत्ता को बरकरार रख सका


# भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की आलोचना

आलोचकों का मानना है कि भारत की गुटनिरपेक्ष नीति सिद्धांत विहीन है

भारत अपने राष्ट्रीय हितों को साधने के लिए महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय फैसले लेने से बचता है

भारत का व्यवहार स्थिर नहीं है

आलोचक कहते हैं कि भारत ने 1971 में सोवियत संघ से मित्रता की संधि की

जो कि गुटनिरपेक्षता की नीति के खिलाफ है

कुछ ने तो यहां तक कह दिया कि भारत सोवियत संघ में शामिल था और गुटनिरपेक्षता का ढोंग करता है


# नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था से क्या अभिप्राय है


गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में शामिल अधिकतर देशों को अल्पविकसित देशों का दर्जा मिला था  यह देश गरीब और पिछड़े हुए थे

इनके सामने मुख्य चुनौती आर्थिक विकास करना, अपनी जनता को गरीबी से निकालना था

बिना आर्थिक विकास के इनके सामने फिर से गुलाम हो जाने का खतरा था

इन देशों की सहायता के लिए नव अन्तराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म हुआ था

1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार और विकास से सम्बंधित सम्मेलन ( UNCTAD ) में

UNCTAD – United Nations Conference On Trade And               Development

संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार और विकास सम्मेलन में

Towards A New Trade Policy For Development” नामक रिपोर्ट छपी  इस रिपोर्ट में निम्नलिखित बाते सुझाई गई थी


# व्यापार प्रणाली में सुधार का प्रस्ताव रखा गया


1) अल्प विकसित देशों का उनके प्राकृतिक संसाधनों पर पूरा नियंत्रण होगा

2) इन देशों की पहुंच पश्चिमी देशों के बाजारों तक होगी

3) पश्चिमी देशों से मंगाई जा रही प्रौद्योगिकी ( टेक्नोलॉजी ) की लागत कम होगी

4) अल्प विकसित देशों की अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं में भूमिका बढ़ाई जाएगी


# गुटनिरपेक्षता ना तो पृथकवाद है और ना ही तटस्थता


पृथकवाद का मतलब है अपने को अंतरराष्ट्रीय मामलों से काटकर रखना

सन् 1787 में अमेरिका में स्वतंत्रता की लड़ाई हुई थी

1787 से 1914 तक अमेरिका ने अपने को अंतरराष्ट्रीय मामलों से अलग रखा

अमेरिका ने पृथकवाद की विदेश नीति अपनाई थी

इसे पृथकवाद के नीति कहते हैं जबकि गुटनिरपेक्ष देशों ने कभी भी पृथकवाद की नीति को नहीं अपनाया

गुटनिरपेक्ष देशों ने हमेशा शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रतिद्वंदी गुटों के बीच में मध्यस्था कराने में सक्रिय भूमिका निभाई है

तटस्थता का अर्थ - मुख्यत युद्ध में शामिल ना होने की नीति का पालन करना

जो देश तटस्थता की नीति का पालन करते हैं उनके लिए यह जरूरी नहीं है

कि वह युद्ध को समाप्त करने में कोई मदद करें

ऐसे देश ना तो युद्ध में शामिल होते हैं और ना ही युद्ध के सही या गलत होने पर अपना कोई पक्ष देते हैं

परंतु गुटनिरपेक्ष देशों ने तटस्थता का पालन नहीं किया

इन देशों ने युद्ध को टालने का प्रयास किया


 


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